पटना
जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने सोमवार को कहा कि जाति आधारित गणना पर श्वेत पत्र जारी करने सहित उनकी तीन प्रमुख मांगें एक महीने के अंदर पूरी नहीं की गई तो वह बिहार में नीतीश कुमार सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू करेंगे।
प्रशांत किशोर ने राज्य में जारी भूमि सर्वेक्षण भी ‘‘तुरंत रोकने” की मांग करते हुए आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है। पूर्व चुनावी रणनीतिकार ने दलित और महादलित समुदायों के सदस्यों को तीन डिसमिल जमीन मुहैया करने संबंधी वादे को लेकर भी सरकार से जवाब मांगा। पत्रकारों से बात करते हुए किशोर ने कहा, ‘‘अगर राज्य की राजग (NDA) सरकार हमारी तीन मांगें नहीं मानती है तो जन सुराज 11 मई से राज्य के 40,000 राजस्व गांवों में हस्ताक्षर अभियान शुरू करेगा।” उन्होंने कहा, ‘‘11 जुलाई को, हम एक करोड़ लोगों के हस्ताक्षर के साथ सरकार को एक ज्ञापन सौंपेंगे। अगर तब भी हमारी मांगों को नजरअंदाज किया गया तो हम मानसून सत्र के दौरान विधानसभा का घेराव करेंगे, जो इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले आखिरी सत्र होगा।”
किशोर ने कहा, ‘‘हमारी पहली मांग राज्य सरकार द्वारा कराई गई जाति आधारित गणना से संबंधित है। मुख्यमंत्री ने 7 नवंबर 2023 को विधानसभा में पेश जाति आधारित गणना रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर 6,000 रुपये प्रति माह से कम आय वाले 94 लाख परिवारों को 2 लाख रुपये की एकमुश्त वित्तीय सहायता देने का वादा किया था। लेकिन एक भी परिवार को यह सहायता नहीं मिली है। हम सरकार से एक महीने के भीतर इस पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग करते हैं।” उन्होंने सवाल किया, ‘‘इस सर्वेक्षण के आधार पर, आरक्षण बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का वादा किया गया था, उसका क्या हुआ?”
किशोर के अनुसार, दूसरी मांग दलित और महादलित परिवारों से जुड़े 50 लाख बेघर/भूमिहीन परिवारों को घर बनाने के लिए तीन डिसमिल जमीन देने के सरकार के वादे से संबंधित है। उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, केवल 2 लाख परिवारों को भूमि आवंटित की गई है और वह भी केवल कागजों पर है और जमीन का कब्जा नहीं दिया गया है। नीतीश कुमार सरकार ने इस मुद्दे पर दलित और महादलित समुदायों के लोगों को धोखा दिया है। सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इन परिवारों को भूमि पर वास्तविक कब्जा कब मिलेगा।”
अपनी तीसरी मांग के तहत किशोर ने राज्य में जारी भूमि सर्वेक्षण को स्थगित करने की मांग की है। उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘हम सरकार से इस प्रक्रिया को तत्काल रोकने का आग्रह करते हैं। भूमि सर्वेक्षण के नाम पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है। अधिकारी लोगों से पैसे ऐंठ रहे हैं। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने 80 प्रतिशत भूमि का सर्वेक्षण कर लिया है और राजस्व अभिलेखों का डिजिटलीकरण कर दिया है, जबकि 2013 में प्रक्रिया शुरू होने के बाद से बिहार में केवल 20 प्रतिशत ही सर्वेक्षण हो पाया है। इस धीमी प्रगति के कारण भूमि संबंधी विवादों में वृद्धि हुई है, जिसमें हत्या और हत्या के प्रयास के मामले भी शामिल हैं।”